अरुण कुमार चौधरी,
झारखंड में दो चरण का चुनाव हो चुका है और दो चरण का चुनाव बाकी है, इस चुनाव में महागठबंधन पूरी दमखम के साथ भाजपा से दो-दो हाथ करने के लिए आमने-सामने है। इस चुनाव में शहरी क्षेत्रों में भाजपा की पकड़ मजबूत दिख रही है, जबकि ग्रामीण क्षेत्र के विशेषकर आदिवासी गांवों में महागठबंधन मजबूत है और अब स्पष्ट हो गया है कि खासकर आदिवासी समाज के करीबन eighty प्रतिशत मत महागठबंधन को देने जा रही है। जिसके कारण भाजपा और आरएसएस काफी चिंतित लग रहे हैं और अपने पाले से आदिवासी के छटकने का कारण रघुवर सरकार के निक्कमेपन तथा गलत नीति के कारण बता रहे हैं और आरएसएस के लोग रघुवर से बहुत ही नाराज चल रहे हैं और इन्हीं वजहों के कारण झारखंड में भाजपा के लिए 2014 का प्रदर्शन इस बार दोहराना संभव नहीं हैा। सभी fourteen सीटों पर सीधी लड़ाई है। झारखंड की आधी सीटों पर आदिवासी वोट काफी निर्णायक है। अब तक के रुझान से लगता कि भाजपा आदिवासी वोट बैंक में बड़ी सेंध नहीं लगा पाई है। इसके पीछे महागठबंधन की रणनीति है। महागठबंधन ने सीएनटी-एसपीटी, सरना कोड, वन पट्टा जैसे मुद्दे उठाकर भाजपा को आदिवासी विरोधी साबित करने की कोशिश की। भाजपा ने धर्मपरिवर्तन कानून से सरना आदिवासियों को पक्ष में करने का प्रयास किया, लेकिन दूसरे राज्यों में इसके नुकसान को देखते हुए इसपर फैसला नहीं लिया जा सका। यही कारण है कि सभी five आदिवासी (एसटी) सीटों खूंटी, लोहरदगा, सिंहभूम, दुमका और राजमहल में महागठबंधन की स्थिति मजबूत है। भाजपा ने अपने बड़े आदिवासी चेहरे अर्जुन मुंडा को खूंटी से उतारा तो कांग्रेस ने उनके सामने झारखंड सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले मंत्री नीलकंठ मुंडा के बड़े भाई कालीचरण मुंडा को खड़ा कर दिया। यहां के five hundredth आदिवासी मतदाताओं में सेंधमारी के लिए अर्जुन ने सारे चुनावी अस्त्र-शस्त्रों का इस्तेमाल किया है। फिर भी अर्जुन कितना सफल रहे, यह रिजल्ट से ही पता चल पाएगा। लोहरदगा, रांची, खूंटी, कोडरमा जैसे भाजपा के गढ़ में महागठबंधन चुनौती देता दिखाई दे रहा है। भाजपा के लिए रांची सीट प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है। सांसद रामटहल चौधरी का टिकट काटकर नए चेहरे संजय सेठ को उतारा है। रांची में मुस्लिम-ईसाई और आदिवासी वोटों का ध्रुवीकरण भाजपा की मुश्किलें बढ़ा सकता है। भाजपा के प्रभाव वाले क्षेत्रों में कम मतदान से कांग्रेस प्रत्याशी सुबोधकांत उत्साहित हैं। सबकी नजर कुर्मी वोट पर है। इसे भाजपा में लाने के लिए सहयोगी दल आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने काफी जोर लगाया। आजसू के साथ होने से भाजपा की ताकत और बढ़ गई। हजारीबाग और जमशेदपुर में कुर्मी वोट मिलकर भाजपा के लिए राह काफी आसान हो गई। गिरीडीह में भाजपा अपना वोट आजसू को देने में कामयाब रही तो महागठबंधन के लिए कड़ी चुनौती होगी। भाजपा की पूरी कोशिश महागठबंधन खासकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के गढ़ संथाल को जीतना है। यहां मतदान आखिरी चरण में nineteen मई को है, लेकिन चुनाव घोषणा के साथ ही भाजपा ने पूरी ताकत लगा दी। हालांकि, अभी तक स्थिति भाजपा के पक्ष में जाती नहीं दिख रही। तीसरे चरण का चुनाव प्रचार खत्म होते ही मुख्यमंत्री रघुवर दास ने खुद संथाल में कैंप करने का फैसला किया है। उन्होंने भाजपा के सभी प्रमुख पदाधिकारियों को भी संथाल कैंप करने का निर्देश दिया है। पिछले लोकसभा चुनाव में अकेले भाजपा को forty first और साथी दल आजसू को four-dimensional वोट मिले थे। महागठबंधन के हिस्से में 12 months (कांग्रेस को thirteen, झामुमो को nine, झाविमो को twelve, राजद को 2%) वोट थे। यानी भाजपा गठबंधन का वोट शेयर 9/11 ज्यादा था। दूसरी बात- पिछली बार आदिवासी वोट का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के खाते में था, जो इस बार थोड़ा नाराज है। साथ ही भाजपा और महागठबंधन के अतिरिक्त बाकी twenty third वोट बंट गए थे, इस बार ये बंटवारा नाममात्र का होने के आसार हैं।